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जोधपुर.हार्ट और लिवर से जुड़े बेबी ऑफ ममता के छह दिन के बच्चों को एम्स जोधपुर में शनिवार को सफलतापूर्वक अलग कर दिया। यह सर्जरी एम्स की दूसरी माइलस्टोन है। देश में इस तरह का यह पहला ऑपरेशन है, जिसमें छह दिन के जुड़वां बच्चों को अलग किया गया है।
एम्स प्रशासन ने इस सर्जरी का निर्णय आपातकालीन स्थिति में लिया, क्योंकि एक बच्चे के गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल में ब्लड का रिसाव शुरू होगया था। इसके अलावा बच्चों में हार्ट और फेफड़े सहित अन्य बीमारी भी थीं। वे सांस नहीं ले पा रहे थे। बच्चों की जांच में पाया गया था कि लिवर के साथ सिंगल पेरिकार्डियल थैली में दो अलग-अलग दिल हैं।
एम्स अधीक्षक और शिशुरोग सर्जन डाॅ. अरविंद सिन्हा ने बताया कि शुक्रवार देर रात काे जुड़वां बच्चों में से एक की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी। उसे गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल में ब्लड का रिसाव शुरू होगया था। तब से उस पर नजर रखी जा रही थी। बच्चे कम वजन के हाेने के चलते खतरा ज्यादा था, इसलिए सुबह ही न्यूनेटल विभाग के डॉक्टरों से ऑपरेशन काे लेकर बात की गई। उनकी सहमति के बाद करीब 12.30 बजे एनेस्थिसिया के विभागाध्यक्ष से भी सर्जरी के दाैरान बेहोश करने की जटिलता पर चर्चा की गई।उन्होंने भी सहमति जताई ताे तुरंत ऑपरेशन करना तय किया और एक और बी टीम बनाई गई। इसमें ऑपरेशन के दाैरान और उसके बाद की भूमिका तय की गई। करीब दाे बजे बच्चों काे ओटी में शिफ्ट किया गया और साढ़े तीन बजे सर्जरी शुरू होगई। करीब सात बजे तक सफल ऑपरेशन कर टीम ओटी से बाहर आगई।
सफल सर्जरी पर एम्स जोधपुर के निदेशक डॉ. संजीव मिश्रा ने ऑपरेटिंग टीम को बधाई देते हुए कहा कि एम्स दिल्ली के बाद एम्स जोधपुर दूसरा चिकित्सा संस्थान है, जिसने दूसरे दाे जुड़वां बच्चों काे सफलतापूर्वक अलग किया है। यह दुनिया में कहीं भी अलग होने वाले सबसे कम उम्र के जुड़ाव बच्चों में से एक हैं और देश में पहले। हम खुश हैं कि टीम ने इमरजेंसी में यह टास्क पूरा किया। छह दिन के बच्चों को बेहोशी की दवा देना ही मुश्किल होता है। हमने अपना काम पूरा किया अब रिकवरी भगवान पर निर्भर है। सबकाे दुआ करनी चाहिए। हम ऐसे प्रयास आगे भी करते रहेंगे।
आपात स्थिति इसलिए...
- शुक्रवार रात 3 बजे एक बच्चे की तबीयत बिगड़ी, खून बहने लगा, जिसे तत्काल रोका। लेकिन स्थिति गंभीर थी।
- अगर एक बच्चे की मौत हो जाती तो दूसरे को सिर्फ 30 मिनट में अलग करना पड़ता, जो बेहद मुश्किल था।
- हीमोग्लोबिन 16 पर था, जो ब्लड निकलने से कम हो गया, उसे खून चढ़ाया गया तब लेवल 12 हो गया।
- एक बच्चे का बीपी 70 तो दूसरे का 60 पर था।
- सर्जरी में बच्चों के हार्ट बाहर आ रहे थे। एक के दिल में जाली लगानी पड़ी।
- हार्ट बीट भी दोनों की अलग-अलग थी तो मॉनिटरिंग भी अलग ही करनी पड़ी।
- एक की स्किन कम पड़ी तो मेश (जाली) लगाई। फिलहाल पेट का हिस्सा इसी से पैक है।
तबीयत बिगड़ने से लेकर सफलता तक के 16 घंटों का पूरा ब्यौरा
- देर रात 3 बजे:दोनों बच्चों में से एक की तबीयत खराब होने के चलते रात को ही डॉक्टर बच्चों को देखने पहुंचे। इसके बाद एक बच्चे का काफी खून निकल गया था। खून रोक सर्जरी की तैयारियां शुरू की।
- दोपहर 2:00 बजे: बच्चों को ओटी में शिफ्ट किया गया। एक बच्चे के सांस की ट्यूब पहले से लगी हुई थी दूसरे के डालने की प्रक्रिया शुरू हुई।
- 2:30 बजे: बच्चों को वेंटीलेटर सपोर्ट िदया गया। एनेस्थिसिया के साथ ही कैथेटर, दोनों को आईवी और यूरीन कैथेटर में डाला गया।
- 3:30 बजे:दोनों बच्चों का पेट खोला गया। लिवर का ऑपरेशन शुरू हुआ।
- शाम 4:45: बजे दोनों के लिवर अलग कर दिए गए।
- 5:10 बजे: हार्ट की झिल्ली को अलग कर रिकंस्ट्रक्ट किया।
- 5:30 बजे: दोनों बच्चे अलग हो गए। इसके बाद टीम ए व टीम बी के रूप में अलग हुई।
- 6:00 बजे: बच्चों को अलग-अलग ओटी टेबल पर ले जाया गया। क्लोजर का काम शुरू किया गया।
- 6:30 बजे: खुले हिस्सों को बंद करने का काम शुरू।
- 7:00 बजे: डॉक्टर्स बाहर आए, कहा- सर्जरी डन।
दो टीम बनाकरकिया ऑपरेशन
ऑपरेशन का निर्णय लेते ही शिशु सर्जन, एनेस्थिसिया, नर्सिंग स्टाफ की दो टीम बनाई गई, जो अलग-अलग दोनों बच्चों को देखेगी। इतने छोटे जुड़वां बच्चों में एनेस्थिसिया देना और लिवर व हार्ट को अलग करना सबसे बड़ी चुनौती थी।
सबकी भूमिका तय की
डॉ. अरविन्द सिन्हा के नेतृत्व में सर्जरी हुई। इसमें शिशु विभाग के डॉ. मनीष पाठक, डॉ. राहुल सक्सेना, डॉ. कीर्ति राठौड़, डॉ. अविनाश जाधव, डॉ. सुबलक्ष्मी, कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. सुरेंद्र पटेल और डॉ. मधुसूदन शामिल थे। एनेस्थिसिया टीम का नेतृत्व प्रो. डॉ. पीके भाटिया ने किया। साथ में डॉ. सादिक, डॉ. अंकुर शर्मा थे। आईसीयू में डॉ. नीरज गुप्ता व टीम बच्चों की देखभाल कर रही है। सफल सर्जरी पर एम्स जोधपुर के निदेशक डॉ. संजीव मिश्रा ने टीम को बधाई दी।
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