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नई दिल्ली. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर 8 फरवरी को वोटिंग होगी। 11 फरवरी को नतीजे आएंगे। दिल्ली में 2013 के बाद दूसरी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। पिछले 6 साल में यहां 5 चुनाव हुए। इनमें 2 लोकसभा, 2 विधानसभा और एक नगर निगम चुनाव हैं। इन पांचों चुनावों के नतीजे का एनालिसिस करने पर पता चलता है कि आम आदमी पार्टी (आप) विधानसभा चुनाव में और भाजपा लोकसभा चुनाव में पहले के मुकाबले मजबूत हुई। वहीं, कांग्रेस 2015 की हार के बाद अब दिल्ली में उभर रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 15.1% था, जो 2017 के नगर निगम चुनाव में 21.09% और 2019 के आम चुनाव में 22.5% हो गया।
विधानसभा चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन: आप का वोट शेयर 24% तक बढ़ा
दिल्ली में 2013 और 2015 में विधानसभा चुनाव हुए। 2013 के विधानसभा चुनाव में आप पहली बार चुनाव में उतरी। पहले ही चुनाव में आप ने 70 में से 28 सीटें जीतीं और 29.4% वोट हासिल किए। आप के आने से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ। उसकी सीटें 43 से घटकर 8 पर पहुंच गई। वोट शेयर भी 40% से कम होकर 25% पर आ गया। 2013 में आप ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 49 दिन में ही सरकार गिर गई। इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में आप का वोट शेयर 24% बढ़ा, 39 सीटों का भी इजाफा हुआ।
पार्टी |
2013 |
2015 |
||
सीट |
वोट% |
सीट |
वोट% |
|
भाजपा |
31 |
33.07% |
3 |
32.1% |
कांग्रेस |
8 |
24.5% |
0 |
9.6% |
आप |
28 |
29.4 |
67 |
54.3% |
2013 में कांग्रेस की हार और भाजपा के बहुमत हासिल न कर पाने की वजह : 15 साल से राज्य में और 10 साल से केन्द्र में सरकार होने के कारण कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। केन्द्र की यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार के मामले सामने आने का भी असर दिखा। निर्भया कांड और अन्ना आंदोलन से भी कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना। भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने की उम्मीद थी, मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद चुनाव सर्वेक्षणों में भी भाजपो को 50+ सीटें बताईं जा रहीं थीं लेकिन अन्ना आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ जाने वाले वोट का बड़ा हिस्सा अपनी तरफ मोड़ा। लोगों के बीच आप की छवि आम लोगों की पार्टी की बनीं। नेतागिरी से दूर इस पार्टी के उम्मीदवारों पर लोगों ने भरोसा जताया।
2015 में आप की एकतरफा जीत की वजह : कांग्रेस के समर्थन से महज 49 दिन चली केजरीवाल सरकार से लोगों की सहानुभूति थी। केजरीवाल ने अपनी 49 दिनों की सरकार में सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का प्रावधान किया था। इस चुनाव में उन्हें इसका फायदा मिला। 2013 में आप के प्रदर्शन से भी लोगों को लगा कि पार्टी को बहुमत मिल सकता है। कांग्रेस को 2013 में समर्थन देकर वापस लेने का खामियाजा मिला, वो 8 सीटों से 0 पर आ गई। भाजपा को स्थानीय नेतृत्व के ऊपर किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाना भारी पड़ा। चुनाव प्रचार के दौरान बेदी को स्थानीय कार्यकर्ताओं से कम समर्थन मिला। इस दौरान बेदी का व्यवहार भी चर्चा में रहा।
लोकसभा चुनाव में पार्टियों का प्रदर्शन: भाजपा का वोट शेयर 10% बढ़ा
दिल्ली में 2013 के बाद दो बार लोकसभा चुनाव हुए। पहला 2014 में और दूसरा 2019 में। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 46% वोट शेयर के साथ सभी 7 सीटें जीतीं। 2019 में भी भाजपा ने सभी 7 सीटें जीतीं, लेकिन इस बार उसका वोट शेयर पिछले चुनाव की तुलना में 10% बढ़कर 56% से ज्यादा हो गया। आप का वोट शेयर 14% तक कम हुआ जबकि कांग्रेस का वोट शेयर 7% से ज्यादा बढ़ गया।
पार्टी |
2014 |
2019 |
||
सीट |
वोट% |
सीट |
वोट% |
|
भाजपा |
7 |
46.4% |
7 |
56.5% |
कांग्रेस |
0 |
15.1% |
0 |
22.5% |
आप |
0 |
32.9% |
0 |
18.1% |
2014 में लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस का सफाया क्यों हुआ? : लोगों ने केन्द्रीय नेतृत्व को ध्यान में रखकर वोट दिया। लोगों को पता था कि केन्द्र में आम आदमी पार्टी बड़ी भूमिका नहीं निभा सकती। ऐसे में आप को 2013 के विधानसभा चुनाव की तरह सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के हाथ सत्ता विरोधी लहर और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के कारण खाली रहे। मोदी लहर भाजपा की एकतरफा जीत का कारण रही।
2019 में भी भाजपा का प्रदर्शन और बेहतर कैसे हुआ? : लोगों ने एक बार फिर केन्द्रीय नेतृत्व को ध्यान में रखकर ही वोट दिया। लोगों को भाजपा के मुकाबले केन्द्र में कांग्रेस और आप का नेतृत्व नजर नहीं आया। भाजपा का राष्ट्रवाद और हिंदू विचारधारा से जुड़े मुद्दों का असर दिखा। भाजपा ने लोगों के सामने कांग्रेस को देश विरोधी और हिंदू विरोधी पार्टी होने की छवि दिखाने में भी कामयाबी हासिल की। 2013 से 2019 के बीच केजरीवाल सरकार कई तरह के विवादों में घिरी रही, जैसे- उप राज्यपाल नजीब जंग और अनिल बैजल से विवाद, आप के संस्थापक सदस्यों जैसे योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण जैसे सदस्यों का आप छोड़ना। इन विवादों का असर भी लोकसभा चुनाव में आप के प्रदर्शन पर दिखा।
2015 में 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतने वाली आप 2017 के एमसीडी चुनाव में 270 में से 50 वार्ड भी नहीं जीत पाई
2017 में हुए दिल्ली के नगर निगम चुनावों में आप 270 वार्डों में से 48 पर ही जीत सकी। दो साल में ही उसका वोट शेयर घटकर 26% पर आ गया। वहीं, 2015 की हार के बाद इन चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर हुआ। 2015 के विधानसभा चुनाव में 10% से भी कम वोट हासिल करने वाली कांग्रेस को नगर निगम चुनाव में 21% से ज्यादा वोट मिले। भाजपा का वोट शेयर भी बढ़ा।
2017 के नगर निगम चुनाव के नतीजे
पार्टी |
सीट |
वोट% |
भाजपा |
181 |
36.23% |
कांग्रेस |
30 |
21.09% |
आप |
48 |
26.23% |
भाजपा की जीत की वजह : सितंबर 2016 में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और नवंबर 2016 में नोटबंदी का फायदा भाजपा को मिला। पार्टी ने स्थानीय नेताओं की जगह मोदी को ही आगे रखकर चुनाव लड़ा। मौजूदा पार्षदों के टिकट काटे। 2017 में ही उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती, जिसका असर भी दिल्ली में दिखा।
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